हलो दोस्तों, मैं नॉन वेज स्टोरी डॉट कॉम पर सभी पाठकों का बहुत बहुत स्वागत करता हूँ। आज मैं आपको अपनी रियल स्टोरी सुनाने जा रहा हूँ। मेरा नाम मृदुल किशोर है। मैं फरुखाबाद का रहने वाला वाला हूँ। कुछ दिन पहले मेरी बहन ने जिला सहकारी बैंक में डाटा इंट्री ओपरेटर की परीक्षा दी थी। उसमे वो पास हो गयी थी। कुछ दिनों बाद उसे फरुखाबाद के जिला सहकारी बैंक में नौकरी मिल गयी। उसने नौकरी ज्वाइन कर ली। मेरी बहन काव्या बला की सुंदर थी। उसका कद ५ फुट ६ इंच का था। ३४ ३२ ३२ का उसका फिगर था। स्लिम और ट्रिम पर्सनाल्टी थी उसकी। वो बहुत सुंदर थी। मेरे मोहल्ले के सारे लड़के उसको चोदने की इक्षा रखते थे।
पर काव्या कोई ऐसी वैसी अल्टर नही थी जो किसी से भी चुदवा ले। धीरे धीरे मेरी बहन काव्या की दोस्ती उनके बैंक के मनेजर वीरभद्र तिवारी से हो गयी। असल में काव्या उसी के कमरे में बैठती थी। वीरभद्र उसका मेनेजर था और उसको टाइप करने के लिए, या कोई सरकारी कागज़ प्रिंट आउट देने के लिए देता था। जब कोई सरकारी फाइल लखनऊ से भेजी जाती थी तो मेरी जवान बहन काव्या उसका प्रिंटआउट निकालती थी। उस सरकारी कमरे में सिर्फ दो लोग ही बैठते थे काव्या और वीरभद्र तिवारी। काव्या अभी जवान थी। फूल सा महकता जिस्म था उसका। धीरे धीरे जब दोनों सालभर तक उसी कमरे में बैठकर काम करते रहे तो वीरभद्र को मेरी बहन से प्यार हो गया। वो काव्या को जल्दी से चोद लेना चाहता था। पर मेरी बहन संस्कार वान थी, वो कोई अल्टर या छिनाल नही थी की विभाग में किसी से भी चुदवा ले।
पर धीरे धीरे काव्या भी वीरभद्र के आकर्षण से बच ना सकी। वीर उससे आये दिन मजाक करने लगा और हर दिन जब काव्या सुबह सुबह नहाधोकर बैंक में पहुचती तो वीरभद्र मेरी बहन को देखकर अंगड़ाई लेने को मजबूर हो जाता।
“काश , इस लौंडिया की चूत मारने को मिल जाती तो मेरी लाइफ सेट हो जाती!” वीरभद्र खुद से कहता। काव्या जब नहाकर 9:30 पर अपनी बैंक पहुचती तो उसके डियोडरेंट की खुसबू पुरे ऑफिस में बिखर जाती। दोस्तों, आप को तो पता ही होगा की आजकल जिला सहकारी बैंक तो बस नाम के लिए चल रही है। वहां पर कोई काम वाम तो होता नही है। इसलिए मेरी बहन काव्या और उसका मनेजर जादातर समय खाली ही रहते।
“काव्या!! जी अगर आप यहाँ नही होती तो पता नही कैसे मेरा वक्त कट पाता। थैंक गॉड…आप यहाँ पर आ गयी!” वीरभद्र कहता तो काव्या हंस देती। वीरभद्र शादी शुदा आदमी था, पर बहुत हैंडसम था। धीरे धीरे मेरी बहन काव्या को उससे प्यार हो गया। वीरभद्र आये दिन मेरी बहन को नये नये सलवार सूट, स्वेटर, जाकेट, सोने के जेवर देने लगा। कुछ दिन बाद उसने मेरी बहन को एक नया लैपटॉप खरीदकर दिया। फिर काव्या उससे पट गयी। एक दिन वीरभद्र ने काव्या को ऑफिस में ही पकड़ लिया और किस करने लगा। काव्या भी सायद उससे चुदवाना चाहती थी। दोनों बिलकुल एक दुसरे के लिए पागल हो गये। वहां पर कोई और नही था। सिर्फ सहकारी बैंक में काव्या और वीरभद्र थे।
वीरभद्र ने खड़े होकर काव्य को गले से लगा लिया।
“ओह्ह्ह्ह …..काव्या! तुम नही जानती हो की मैं तुमको कितना जादा पसंद करता हूँ!!…..मेरे पास आ जाओ जान!!” वीरभद्र बोला
काव्या खुद उसके सीने ने लग गयी और दोनों गले लग गये। आज वीरभद्र को बहुत मजा आया। क्यूंकि कई महीनो ने वो काव्या को अंदर ही अंदर पसंद करता था, पर अपने प्यार का इजहार नही कर पाता था। पर आज उसने अपने प्यार का इजहार कर दिया था। दोनों खड़े होकर गले लग गये और वीरभद्र ने मेरी मस्त जवान बहन को बाहों में भर लिया। काव्या के महकते ड़ीयोडरेंट से वीरभद्र का तनमन महक उठा। फिर वो मेरी बहन के रसीले और ताजे होठ पीने लगा। आज तो जैसे वीरभद्र का सपना सच हो गया था। जो खूबसूरत माल उसके साथ नौकरी करती थी, उसे उसने बाहों में भर लिया था।
वीरभद्र के हाथ मेरी बहन काव्या की पीठ पर यहाँ वहां नाचने लगे और उसका लंड खड़ा हो गया। वो मेरी बहन की रसीली बुर को पीना चाहता था और चूत में लंड देना चाहता था। वीरभद्र का मेरी बहन को चोदने का बड़ा मन था। दोनों बड़ी देर तक चुम्मा चाटी करते रहे। उसके बाद दोनों एक दुसरे की आँखों में देखने लगे। एक दूसरे को ताड़ने में उनको बहुत मजा मिल रहा था। वीरभद्र ने मेरी बहन काव्या का दुप्पटा हटा दिया। और सलवार को वो निकालने लगा। सायद काव्या भी चुदवाने के फुल मूड में थी। उसने खुद ही अपने हाथ उपर कर दिए। वीरभद्र से सलवार निकाल दी। मेरी नंगी बहन को देखकर उसको अंगडाई आ गयी। काव्या ने गुलाबी रंग की कसी और बेहद चुस्त ब्रा पहन रखी थी। वीरभद्र ने उसे गले से लगा लिया और उसके गाल, गले और होठो को किसी दीवाने की तरह चूमने लगा और काव्या को प्यार करने लगा। काव्या आह आह करने लगी। वो गर्म आहे भरने लगी।
“चूत दोगी मेरी जान????” वीरभद्र ने पूछा
“हाँ दूंगी…..बिलकुल दूंगी!…आह ..आह वीर आज मुझे कसके चोद लो!! मैं बहुत दिनों से लंड की प्यासी हूँ!” काव्या बोली तो वीरभद्र पागल हो गया। उसने काव्या की नंगी पीठ में हाथ डाल दिया और ब्रा खोल दी। ब्रा हटते ही उसे मेरी बहन के ३४” के २ बेहद खूबसूरत मम्मो के दर्शन हो गये। मेरी नंगी बहन के नंगे मम्मे देखकर मानो उसका मनेजर वीरभद्र पागल हो गया था। उसने काव्या की कंप्यूटर टेबल पर ही उसको झुका दिया और उसके दूध हाथ में ले लिए जैसे कोई पुलिस वाला चोर को पकड़ लेता है। उसके बाद तो वीरभद्र की बल्ले बल्ले हो गयी। वो मजे लेकर मेरी बहन की नंगी छातियाँ जोर जोर से दाबने लगा। उफफ्फ्फ्फ़….उस नामुराद को आज तो जन्नत ही मिल गयी थी। काव्या भी चुदने के फुल मूड में थी। वीरबद्र कस कस के काव्या के रसीले आम दबाने लगा। ओह्ह्ह ….क्या मस्त मस्त आम थे। इनको देखकर तो कोई भी मर्द पागल हो जाता।
वीर जोर जोर से काव्या के दूध मीन्जने लगा। काव्या आह ….आह करने लगी। फिर वीर मेरी बहन पर झुक गया और काव्या के हरे हरे दूध मुँह में भरकर मजे लेकर पीने लगा। उफ्फ्फ्फ़ ….क्या मस्त नुकीली नुकिली छातियाँ थी काव्या की। वीरभद्र की जिन्दगी में तो आज बहार ही आ गयी थी। वो मुँह में भरके काव्या के छलकते जाम पीने लगा। वो शिद्दत से मेरी बहन के दूध पी रहा था। काव्या कुछ देर बाद बहुत जादा गर्म हो गयी थी। उसकी चूत गीली हो गयी थी और चूत के उपर की सलवार भीग गयी थी। वीरभद्र ने उसे अपने ऑफिस में ही चोदने का फैसला कर लिया था। मेरी बहन काव्या की नंगी चिकनी और बेहद सेक्सी पीठ वीरभद्र के हाथों के गिरफ्त में थी।
“चोद डालो…..वीरभद्र…..मेरे दिलबर….मेरे जानम!!…..आज अपनी प्रेमिका को यही पर रगड़कर चोद डालो!!” काव्या जोर जोर से कहने लगी क्यूंकि अब वो बेकाबू हो रही थी और जल्दी से लंड खाना चाहती थी। ये सुनकर वीरभद्र का हाथ मेरी बहन की सलवार की तरफ दौड़ गया और वो चूत सहलाने लगा सलवार के उपर से। पर फ़िलहाल वो काव्या के मस्त मस्त आम चूसने में बिसी था। कभी आम चूसता, तो कभी उनके ताजे ताजे ओंठ पीता। कुछ देर बाद वीरभद्र काव्या की सलवार का की नारे की गाठ ढूंढने लगा। पर उसको नही मिली। तब काव्या ने खुद अपनी नारे की गाठ खोल ढूढ़ ली और जल्दी से खोल दी। वीर ने उसकी सलवार निकाल दी। काव्या की पेंटी पूरी तरह से उसकी चूत के माल से भीग गयी थी। वीरभद्र ने मेरी बहन की पेंटी में हाथ डाल दिया और चूत सहलाने लगा।
वीरभद्र के हाथ में काव्या की चूत का चिपचिपा माल लग गया जिसको वो बार बार मुँह में लेकर चूसने लगा। काव्या अभी तक कुवारी थी और एक बार भी नही चुदी थी। वीरभद्र वो किस्मत वाला आदमी था, जो शादी शुदा था, फिर भी नई माल को चोदने का सौभाग्य उसको मिलने वाला था। दोनों लोग चुदाई करने को पागल हो रहे थे। वीर जल्दी जल्दी काव्या की पेंटी में हाथ डालकर चूत फेटने लगा और माल ऊँगली में लेकर पीने लगा। बड़ी देर तक यही मीठा खेल चलता रहा। उसके बाद वीरभद्र ने मेरी बहन काव्या की पेंटी निकाल दी और उसे कंप्यूटर टेबल पर लिटा दिया। कितनी अजीब बात थी जिस टेबल पर मेरी बहन काम करती थी, उसी पर वो चुदने वाली थी। कितनी अजीब बात है ये।
वीरभद्र ने काव्या को टेबल पर लिटा दिया और उसके पैर खोल दिए। उसको मेरी बहन की ५ इंच लम्बी फांक वाली बहुत ही सुंदर चूत के दर्शन हो गये। मेरी बहन का भोसड़ा बहुत ही सुंदर था५ इंच लम्बी फांक वाली बहुत ही सुंदर चूत के दर्शन हो गये। वीरभद्र तो देखकर ही पागल हो रहा था५ इंच लम्बी फांक वाली बहुत ही सुंदर चूत के दर्शन हो गये। फिर उसने अपना मुँह काव्या के भोसड़े पर रख दिया और मजे से मेरी बहन की चूत पीने लगा। आह ….कितना मजा मिला आज वीरभद्र को……कितना आनंद आया उसे। आधे घंटे तक उसने मेरी बहन की रसीली चूत पी। उसके बाद उसने अपने सारे कपड़े निकाल दिए। वीरभद्र का लंड किसी बैल के लंड जैसा मोटा और विशाल था। उसने अपने लंड का सुपाडा काव्या के भोसड़े पर रख दिया और गच्च से जोर का धक्का मारा तो उसकी सील टूट, वीरभद्र मेरी बहन को मजे लेकर चोदने लगा। आह कुछ ही देर में मेरी बहन काव्या आह आह माँ माँ ….उई उई ..आआअ करने लगी। वो अपनी बैंक के मनेजर से चुदने लगी। वीरभद्र गप्प गप्प काव्या को चोदने लगा।
कुछ दी देर में वीरभद्र पूरी तरह से मेरी बहन के उपर कंप्यूटर टेबल पर लेट गया और चोदने लगा। कितना अद्भुत था ये मिलन, कितनी मस्त थी ये चुदाई। काव्या की कुवारी चूत को चोदकर वीरभद्र को आप परम सुख, चरम सुख प्राप्त हो गया। ओह्ह उसकी चूत कितनी कसी थी। मुस्किल से वीरभद्र का लंड उस गुलाबी चूत में चोद पा रहा था। दोस्तों, उस दिन मेरी बहन १ घंटे नॉन स्टॉप चुदी। वीरभद्र ने काव्या को इतना चोदा की दोनों परम सुख को प्राप्त हो गये। उसके बाद वीरभद्र ने अपना माल काव्या के भोसड़े में ही छोड़ दिया। ना जाने कितनी पिचकारियां उसने मेरी बहन की चूत में छोड़ दी। फिर वीरभद्र अपनी सरकारी घुमने वाली कुर्सी पर बैठ गया और काव्या को उसने अपनी बाहों में भर लिया।
“क्यूँ मेरी बुलबुल…..कैसा लगा मेरा लौड़ा???? मीठा है की नही????” वीरभद्र ने प्यार से पूछा
“आह…..बहुत मजा आया तुम्हारा लौड़ा खाकर वीर। तुम्हारा लौड़ा सच में बहुत मीठा है!!” मेरी बहन काव्या बोली
फिर दोनों सरकारी कुर्सी पर बैठकर शाम के ५ बजे तक मजे करते रहे। फिर बैंक बंदकर चले आये। दोस्तों इस तरह मेरी बहन की पहली चुदाई सम्पन्न हो गयी। अगले दिन जब मेरी बहन काव्य ऑफिस गयी तो वीर बिलकुल नये कपड़े पहने था। मेरी बहन की चूत मारने के बाद वो उसे बहुत जादा पसंद करने लगा था। वीरभद्र ने उसे एक बड़ा सा ताजा महकते फूलों का बुके गिफ्ट किया। जादातर समय तो बैंक में कोई रहता ही ना था। खाली वक़्त में वीरभद्र मेरी बहन के साथ इश्क लडाता था। उस दिन दोनों सुबह आते ही आते एक दुसरे से चिकप गये।
“जानू!! कल रात जब मैं सोने गयी तो सिर्फ तुम्हारे ही हसीन सपने मुझे आ रहे थे बार बार !!” काव्या बोली
“कल मैंने तुमको रगड़कर चोदा जो था….” वीरभद्र बोला
“जानू! ….आज फिर मुझे तुम्हारी चूत मारनी है….” हँसते हुए वीर बोला
“चोद लेना मुझे जी भरकर वीर…..अब तो मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ!!” मेरी बहन काव्या किसी अल्टर की तरह बोली।
दोनों दोपहर लंच टाइम तक अपनी अपनी फाइल निपटाते रहे और लंच का समय हो गया। दोनों साथ में खाना खाने लगे। वीरभद्र से चुदने के बाद काव्या उस पर फ़िदा हो चुकी थी, और पूरी तरह से लट्टू हो चुकी थी। आज वो अपने यार और आशिक वीरभद्र के लिए आलू के पराठे और बैगन का भरता बनाकर ले गयी थी। वो बड़े प्यार से अपने आशिक वीरभद्र को अपने हाथ से पराठे खिला रही थी। खाने के बाद वीरभद्र ने फिर से उसे बाहों में भर लिया और चुम्मा चाटी करने लगा। आज फिर से वीर मेरी बहन को चोदना चाहता था। उसने काव्या की सलवार निकाल दी और चड्ढी भी निकाल दी। दोनों चुदाई शुरू की करने वाले थे की उस सहकारी बैंक के ब्रांच मनेजर पता नही कहा से आये। कुल ३ लोग साथ में थे जो सभी सहकारी बैंकों के काम काज की निगरानी करते थे। वो सीधा ब्रांच मनेजर वीरभद्र के कमरे में घुसने लगे।
वीरभद्र ने जल्दी से काव्या की सलवार कम्प्यूटर टेबल की अलमारी में छुपा दी। काव्या ने अपनी कमीज तो पहन रखी थी। वो जल्दी से अपनी कंप्यूटर ओपरेटर वाली कुर्सी पर बैठ गयी। वो इस तरह से बैठी थी की उसके पैर नही दिख रहे थे। कोई नही जान सकता था की वो नीचे से नंगी होगी। वीरभद्र बड़ा चालू आदमी था। उसने जल्दी से अपने बाल और कपड़े ठीक कर लिए और अपनी कुसी पर बैठ गया। जब सहकारी बैंक के हेड मनेजर और बड़े अधिकारी अंदर आये तो काव्या और वीरभद्र ने उनका अच्छा स्वागत किया।
वीरभद्र ने हाथ मिलाया और काव्या ने नमस्ते सर कहा। वो तीनो लोग कुछ देर तक वीरभद्र के सामने वाली कुर्सी पर बैठे रहे और कामकाज के बारे में पूछते रहे।१५ २० मिनट बाद वो लोग चले गये। वीरभद्र ने चपरासी को बाहर बिठा दिया और कहा की कोई अधिकारी इधर आये तो तुरंत उसे खबर करे। उसके बाद मनेजर वीरभद्र अपने कमरे में आ गया और अपनी माल अपनी कंप्यूटर ओपरेटर से इश्क लड़ाने लगा। उसने मेरी बहन को उसकी टेबल पर ही कुतिया बना दिया और उसकी चूत और गांड दोनों २ घंटे तक मारी। आज मेरी बहन को ७ साल उस सहकारी बैंक में हो चुके है। वो रोज वीरभद्र का लंड खाती है और उसकी रखेल बन चुकी है। शादी भी नही कर रही है और बार बार कहती है…..मुझे बस वीर से भी चुदवाना है किसी और से नही। ये कहानी आप नॉन वेज स्टोरी डॉट कॉम पर पढ़ रहे है।
Comments are closed.