एक हॉट और बेकाबू बहन की सेक्सी कहानी लंड की तलाश

मेरी जवानी की आग ऐसी जली कि हर दिन लंड की तलाश में चूत तड़पती है—एक हॉट और बेकाबू बहन की सेक्सी कहानी

मेरा नाम मोनिका है। मैं 22 साल की हूँ, गोरी, जवान और भरे हुए जिस्म वाली लड़की। मेरी चूचियाँ बड़ी, गोल और रसीली हैं, जैसे दो पके खरबूजे, जो मेरी टाइट टी-शर्ट या कुर्ती में हमेशा उभरे रहते हैं। मेरे निप्पल सख्त और गुलाबी हैं, जो कपड़े के ऊपर से हल्के-हल्के नज़र आते हैं और मर्दों की आँखों को चुभते हैं। मेरी कमर पतली है, और मेरी गाँड मोटी, नरम और गोल है, जो चलते वक्त लचकती है और सड़क पर हर मर्द का ध्यान खींचती है। मेरी जाँघें मोटी और चिकनी हैं, जैसे मलाई की परत, और मेरी चूत की गर्मी मेरे चेहरे की चमक से छिप नहीं पाती। मैं दिल्ली में अपने मम्मी-पापा और छोटे भाई के साथ रहती हूँ, लेकिन मेरी जवानी संभाली नहीं जा रही। हर दिन, हर रात, मेरी चूत लंड की तलाश में तड़पती है। ये मेरी कहानी है—हवस, बेकाबूपन और चुदाई की सच्चाई।

जवानी की आग का पहला अहसास

ये मार्च 2025 की बात है। दिल्ली में गर्मी शुरू हो चुकी थी, और मेरे जिस्म में एक अजीब सी आग भड़क रही थी। मैं कॉलेज में थी, लेकिन मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता था। मेरी चूचियाँ हर दिन भारी लगती थीं, और मेरी चूत हर रात गीली हो जाती थी। मैंने कभी किसी लड़के को छुआ नहीं था, लेकिन मेरे सपनों में मोटे, सख्त लंड नाचते थे। रात को मैं अपनी उंगलियाँ चूत में डालती, उन्हें अंदर-बाहर करती, और सिसकियाँ लेती। “आह्ह… कोई लंड चाहिए…” मैं फुसफुसाती, लेकिन वो मज़ा अधूरा रहता। मेरी जवानी बेकाबू हो रही थी। मैं दिन में लड़कों को घूरती—कॉलेज के दोस्त, बस में सवारियाँ, मोहल्ले के लड़के—हर किसी के पैंट में उभार देखकर मेरी चूत सनसनाती। “मुझे लंड चाहिए,” मैं सोचती, लेकिन शर्म और डर मुझे रोकते।

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एक दिन कॉलेज से लौटते वक्त बस में एक लड़का मेरे पास खड़ा था। उसकी पैंट में उसका लंड सख्त दिख रहा था। मेरी नज़रें बार-बार वहाँ जा रही थीं। “आह्ह… कितना मोटा होगा,” मैंने सोचा। उसने मुझे देखा और मुस्कुराया। मेरी चूत गीली हो गई। घर पहुँचकर मैंने बाथरूम में अपनी उंगलियाँ चूत में डालीं। “आह्ह… लंड चाहिए… कोई चोदे मुझे,” मैं चीखी। मेरी चूचियाँ सख्त थीं, और मेरा पानी बह रहा था। लेकिन वो आग नहीं बुझी।

पड़ोसी का लंड और पहली चुदाई

मेरी तड़प बढ़ती जा रही थी। एक दिन, 10 मार्च की शाम, मैं छत पर थी। मैंने टाइट टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने थे। मेरी चूचियाँ टी-शर्ट में उभरी थीं, और मेरी जाँघें नंगी थीं। हमारा पड़ोसी, रोहन, अपनी छत पर था। वो 25 साल का था, गोरा, मज़बूत और हॉट। उसकी नज़रें मेरे जिस्म पर थीं। “मोनिका, क्या कर रही हो?” उसने पूछा। “बस ऐसे ही, रोहन भैया,” मैंने कहा। मेरी आवाज़ में तड़प थी। “नीचे आओ, कुछ बात करें,” उसने कहा। मेरी चूत सनसना उठी। मैं नीचे गई।

उसके घर में कोई नहीं था। “मोनिका, तू बहुत सेक्सी है,” उसने कहा और मेरे पास आ गया। उसका हाथ मेरी कमर पर रखा। “आह्ह… रोहन भैया…” मैं सिसक पड़ी। “मोनिका, तुझे क्या चाहिए?” उसने पूछा। “मुझे लंड चाहिए,” मैंने शरमाते हुए कहा। वो हँसा। “मोनिका, मेरा लंड ले,” उसने कहा और मेरी टी-शर्ट ऊपर उठा दी। मेरी चूचियाँ नंगी हो गईं। मेरे निप्पल सख्त थे। “रोहन, ये मस्त हैं,” उसने कहा और एक चूची मुँह में ले ली। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर फिसली। “आह्ह… चूसो… आह्ह…” मैं चीखी। उसका दूसरा हाथ मेरी दूसरी चूची को मसल रहा था। मेरी चूचियाँ लाल हो गईं।

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उसने मेरे शॉर्ट्स उतार दिए। मेरी चूत नंगी थी। मेरी हल्की झाँटें गीली थीं। “मोनिका, तेरी चूत कितनी गरम है,” वो बोला और अपनी उंगली मेरी चूत में डाल दी। “आह्ह… रोहन… और डालो,” मैं तड़प रही थी। उसने अपनी पैंट उतारी। उसका 7 इंच का लंड सख्त और मोटा था। “रोहन, ये डाल दो,” मैं चिल्लाई। उसने मेरी टाँगें चौड़ी कीं। मेरी चूत खुल गई। उसने अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया। “आह्ह… रोहन… फट गई… आह्ह…” मैं चीखी। उसका लंड मेरी चूत को चीर रहा था। वो मेरी चूचियाँ दबाते हुए मुझे चोदने लगा। “मोनिका, तेरी चूत टाइट है,” वो बोला। हर धक्के से मेरी गाँड उछल रही थी। “रोहन, और जोर से… फाड़ दो,” मैं चिल्ला रही थी। उसने मुझे चोदा और मेरी चूत में झड़ गया। उसका गर्म माल मेरी चूत से बह रहा था। “रोहन, मज़ा आ गया,” मैं हाँफते हुए बोली। “मोनिका, अब रोज़ चुदवाना,” वो बोला।

हर दिन नया लंड

उस दिन के बाद मेरी चूत को लंड की आदत पड़ गई। रोहन मुझे हर हफ्ते चोदता। लेकिन मेरी जवानी की भूख बढ़ती गई। कॉलेज में मैंने अपने सीनियर, अजय, को पटाया। एक दिन उसने मुझे लाइब्रेरी के पीछे चोदा। “मोनिका, तेरी गाँड मस्त है,” उसने कहा और मेरी गाँड में लंड डाला। “आह्ह… अजय… फाड़ दो,” मैं चीखी। उसने मेरी चूत और गाँड दोनों चोदी। फिर मोहल्ले का दुकानदार, रवि, मेरे निशाने पर आया। उसने अपनी दुकान में मुझे चोदा। “मोनिका, तेरी चूत रसीली है,” वो बोला। उसका लंड मेरी चूत में गहरा गया।

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हर दिन मैं लंड की तलाश में रहती। बस में, कॉलेज में, मोहल्ले में—हर मर्द का लंड मुझे चाहिए था। मेरी चूचियाँ चूसवाने की आदत पड़ गई। मेरी गाँड और चूत हर रात किसी न किसी लंड से भरती। “मुझे चुदना है,” मैं सोचती और किसी को पटा लेती।

आज की तड़प

अब मार्च का अंत है। मेरी जवानी संभाली नहीं जा रही। हर रात मैं अपनी चूत में उंगलियाँ डालती हूँ, लेकिन वो मज़ा नहीं मिलता। रोहन, अजय, रवि—सब मुझे चोदते हैं, लेकिन मेरी चूत की भूख खत्म नहीं होती। “लंड चाहिए… और लंड चाहिए,” मैं हर दिन सोचती हूँ। मेरी जवानी की आग ने मुझे रंडी बना दिया।

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