Holi Devar Bhabhi Sex Story – हाय दोस्तों, मेरा नाम रानी है। उम्र 27 साल, और एक ऐसा बदन जिसे देखकर मर्दों के मुँह में पानी आ जाए। मेरी चूचियाँ मोटी और गोल हैं, जो साड़ी में भी छुप नहीं पातीं, और मेरी गांड का उभार हर कदम पर लोगों की नजरें चुरा लेता है। गोरा रंग, लंबे बाल, और एक चेहरा जो मासूमियत और शरारत का मिश्रण है। मैं अपने पति, मनोज, के साथ उनके गाँव में रहती थी। मनोज साधारण मर्द था—प्यार करने वाला, लेकिन बिस्तर पर वो मुझे कभी संतुष्ट नहीं कर पाया। उसकी छोटी-सी चुदाई से मेरी चूत की आग ठंडी होने का नाम नहीं लेती थी। फिर घर में था मेरा देवर, विजय—24 साल का, लंबा, गठीला, और ऐसा मोटा, काला लंड जिसे देखकर मेरी चूत में सनसनी दौड़ जाती थी। विजय की नजरें मुझ पर शुरू से ही गंदी थीं, लेकिन मैं उसे टालती रही। मगर होली के उस दिन उसने जो किया, उसने मेरे जिस्म को रंग और शराब की मस्ती में डुबो दिया। ये मेरी कहानी है, जो मैं आपके लिए लिख रही हूँ।
उस दिन सुबह से मौसम में उमस थी। होली का त्योहार था, और गाँव की हवा में रंगों की मस्ती बिखरी हुई थी। ढोल की थाप गूँज रही थी, और लोग एक-दूसरे को रंगों से सराबोर कर रहे थे। मैंने सोचा था कि आज थोड़ा सज-संवर लूँ। मैंने एक हल्की गुलाबी साड़ी पहनी, जो इतनी पतली थी कि मेरे जिस्म की हर लकीर को उभार रही थी। मेरा ब्लाउज टाइट था, और मेरी चूचियाँ उसमें कैद होने को बेताब थीं। मनोज सुबह ही गाँव के दोस्तों के साथ निकल गया था, और घर में मैं अकेली थी। विजय कहीं बाहर था, शायद भांग पीने गया हो। मैं आंगन में खड़ी थी, पानी की बाल्टी लेकर अपने हाथ धो रही थी, कि अचानक पीछे से एक ठंडा रंग मेरी पीठ पर पड़ा। मैं चौंककर पलटी, और सामने विजय खड़ा था—हाथ में रंग की पिचकारी लिए, उसकी आँखों में नशा और शरारत। “होली मुबारक, भाभी,” उसने हँसते हुए कहा।
मैंने उसे घूरा, “विजय, ये क्या बदतमीजी है?” लेकिन मेरे गुस्से में भी एक हल्की-सी हँसी थी। उसने मेरी ओर बढ़ते हुए कहा, “भाभी, होली में बदतमीजी नहीं, मस्ती होती है।” उसने मेरे चेहरे पर रंग मला, और उसकी उंगलियाँ मेरी चूचियों तक सरक गईं। मैं सिहर उठी, “उफ्फ… विजय… ये क्या कर रहा है…” उसने मेरे ब्लाउज पर रंग की पिचकारी मार दी, और मेरा गुलाबी ब्लाउज लाल रंग से भीग गया। मेरी चूचियाँ साफ दिखने लगीं, और मेरे निप्पल बाहर उभर आए। “आह्ह्ह… विजय… मत कर… मैं तेरी भाभी हूँ…” मैं सिसकार रही थी। लेकिन वो मेरे करीब आया और बोला, “भाभी, तेरी चूचियाँ तो रंगों में और मस्त लग रही हैं। इन्हें चूसने का मन कर रहा है।” उसने मेरी साड़ी का पल्लू खींचा और मेरा ब्लाउज फाड़ दिया। मेरी गोरी, मोटी चूचियाँ उसके सामने थीं, रंगों से सनी और सख्त।
मैं तड़प उठी, “आह्ह्ह… विजय… छोड़ दे… उफ्फ…” लेकिन वो मेरी चूचियों पर और रंग मलने लगा। उसने लाल और नीला गुलाल लिया और मेरे निप्पलों पर रगड़ दिया। फिर एक चूची को मुँह में भर लिया। “उफ्फ… भाभी… तेरे दूध रंगों से और स्वादिष्ट हो गए… आह्ह्ह…” वो मेरे निप्पल को चूस रहा था, कभी जीभ से चाटता, कभी दाँतों से हल्का काटता। उसकी उंगलियाँ मेरी दूसरी चूची को मसल रही थीं, और रंग मेरे जिस्म पर फैल रहा था। “आह्ह्ह… विजय… धीरे चूस… मेरी चूचियाँ दुख रही हैं… ओहhh…” मैं सिसकार रही थी। मेरी चूत में गीलापन बढ़ रहा था, और मैं अपने आपको रोक नहीं पा रही थी। उसने मेरी साड़ी पूरी उतार दी, और मैं सिर्फ पेटीकोट में उसके सामने खड़ी थी।
विजय ने मुझे आंगन में बिठाया। उसने पास में पड़ी शराब की बोतल उठाई, जो भांग के साथ रखी थी। “भाभी, तेरी चूत को भी होली का नशा चढ़ाऊंगा,” उसने शरारत से कहा। मैं डर गई, “विजय… ये क्या करने जा रहा है… उफ्फ…” उसने मेरा पेटीकोट ऊपर उठाया, और मेरी चूत उसके सामने थी—चिकनी, गोरी, और गीली। उसने शराब की बोतल खोली और मेरी चूत पर थोड़ी शराब टपकाई। ठंडी शराब मेरी चूत पर गिरी, और मैं सिहर उठी। “आह्ह्ह्ह… विजय… मेरी चूत में क्या डाल रहा है… ओहhh…” मैं चिल्ला रही थी। शराब मेरी चूत में रिस रही थी, और एक अजीब-सी जलन के साथ मज़ा भी दे रही थी। उसने मेरी चूत पर अपनी जीभ रखी और शराब के साथ मेरा रस चाटने लगा। “उफ्फ… भाभी… तेरी चूत में शराब का नशा गजब का है… आह्ह्ह…” वो मेरी चूत को चूस रहा था, और मैं तड़प रही थी। “आह्ह्ह… विजय… चाट ले… मेरी चूत को चूस डाल… उफ्फ…” मैं सिसकार रही थी। उसने मेरी चूत में अपनी उंगलियाँ डाल दीं, और शराब के साथ मेरा रस बाहर निकालने लगा। “उफ्फ… विजय… दर्द हो रहा है… मेरी चूत फट रही है… आह्ह्ह…” मैं कराह रही थी।
उसने अपनी पैंट नीची की, और उसका मोटा, काला लंड बाहर आ गया—लंबा, सख्त, और नसों से भरा हुआ। मैं उसे देखकर डर गई। “विजय… ये बहुत बड़ा है… मेरी चूत फट जाएगी… उफ्फ…” मैं काँप रही थी। लेकिन वो मेरे पास आया और बोला, “भाभी, होली का असली रंग तो अब चढ़ेगा।” उसने मेरा मुँह पकड़ा और अपना लंड मेरे होंठों पर रगड़ा। “चूस इसे, भाभी। मेरे लिए तैयार हो जा,” उसने कहा। मैंने डरते-डरते उसका लंड मुँह में लिया। “उम्म… विजय… कितना मोटा है… उफ्फ…” मैं चूस रही थी, और उसका लंड मेरे गले तक जा रहा था। वो मेरे बाल पकड़कर मेरे मुँह को चोदने लगा, “चूस, भाभी… मेरे लंड को रंग दो… आह्ह्ह…”
फिर उसने मुझे जमीन पर लिटाया और मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख लीं। मेरी चूत उसके सामने थी, शराब और रस से गीली। “भाभी, अब तेरी चूत में मेरा रंग भर दूँगा,” उसने कहा और अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ा। “विजय… धीरे करना… उफ्फ…” मैंने कहा। उसने एक जोरदार झटका मारा, और उसका लंड मेरी चूत में घुस गया। “आह्ह्ह्ह… मर गई… विजय… निकाल दो… मेरी चूत फट गई… उफ्फ…” मैं दर्द से चीख पड़ी। उसका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर तक जा चुका था। वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा, और “थप-थप-थप” की आवाज गूँज उठी। “भाभी, तेरी चूत को शराब और रंग से चोद रहा हूँ,” वो गंदी बात करते हुए मेरी चूचियाँ मसल रहा था। मैं कराह रही थी, “आह्ह्ह… विजय… धीरे… मेरी चूत जल रही है… ओहhh…”
धीरे-धीरे दर्द मज़े में बदल गया। मैंने उसकी कमर पकड़ ली और चिल्लाई, “चोद दो… अपनी भाभी की चूत को फाड़ दो… आह्ह्ह…” वो मेरी चूत को जमकर चोद रहा था। फिर उसने मुझे घोड़ी बनाया। मेरी गांड हवा में थी, और उसने मेरी गांड पर रंग मला। “भाभी, तेरी गांड भी चोदूँगा,” उसने कहा और मेरी गांड पर थूक लगाया। मैं डर गई, “विजय… गांड मत मार… उफ्फ…” लेकिन उसने अपना लंड मेरी गांड में सरकाना शुरू किया। “आह्ह्ह्ह… मर गई… निकाल दो… ओहhh…” मैं चिल्ला रही थी। उसका लंड मेरी गांड को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया। वो मेरी गांड को चोदने लगा, और मेरी सिसकारियाँ तेज हो गईं, “उफ्फ… विजय… धीरे… मेरी गांड फट रही है… आह्ह्ह…” धीरे-धीरे मज़ा आने लगा, और मैं चिल्लाई, “चोद दो… मेरी गांड को भी फाड़ दो… ओहhh…”
होली की मस्ती बढ़ती गई। उसने मुझे फिर से लिटाया और मेरी चूत में लंड पेल दिया। “भाभी, तेरी चूत में मेरा रस डालूँगा,” वो गुर्रा रहा था। मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह्ह… विजय… चोदो… मेरी चूत को भर दो… उफ्फ…” उसका लंड मेरी चूत की गहराई तक जा रहा था। वो मेरी चूचियों को चूस रहा था, और उसकी उंगलियाँ मेरी गांड में घुस रही थीं। “उफ्फ… विजय… मेरे दोनों छेद भर दो… आह्ह्ह…” मैं चिल्ला रही थी। आखिर में उसका रस मेरी चूत में छूट गया। “आह्ह्ह… भाभी… ले मेरा रंग…” वो चिल्लाया। मैं भी झड़ गई, और हमारा रस जमीन पर फैल गया।
मैं थककर लेट गई। मेरी चूचियाँ रंगों से सनी थीं, मेरी चूत शराब और रस से गीली थी। “विजय, तूने मुझे होली में चोद दिया,” मैं हँसते हुए बोली। वो मेरे पास लेटा और बोला, “भाभी, ये तो होली का असली रंग है।” दोस्तों, उस दिन के बाद विजय मेरे साथ हर बार रंग और शराब की मस्ती करता है। मेरी ये कहानी आपको कैसी लगी?