Sasur Bahu Sex : गाँव की सुबह शांत थी। सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था, और खेतों से आने वाली ठंडी हवा राधिका के कमरे में खुली खिड़की से आ रही थी। राधिका, 24 साल की जवान और खूबसूरत बहू, अपनी चारपाई पर बैठी थी। उसकी गोरी त्वचा पर सुबह की हल्की रोशनी पड़ रही थी, और उसकी साड़ी का पल्लू थोड़ा सरक कर उसकी पतली कमर को नंगा छोड़ गया था। उसकी आँखों में एक उदासी थी, जो पिछले दो सालों से उसका पीछा कर रही थी। उसका पति, सुनील, एक ट्रक ड्राइवर था, जो महीने में सिर्फ़ दो-तीन दिन घर आता था। और जब आता, तो शराब के नशे में धुत होकर सो जाता। राधिका की जवानी, उसकी चाहतें, सब बेकार पड़ी थीं।
आँगन में एक कड़क आवाज़ गूँजी, “राधिका, चाय बना दी क्या?” ये सुनील का बाप, यानी राधिका का ससुर, बलदेव था। 50 साल की उम्र में भी बलदेव का बदन कसा हुआ था। गाँव में खेती का काम और मेहनत ने उसे ताकतवर बनाए रखा था। उसकी मूँछें घनी थीं, और आँखों में एक चमक थी जो उम्र के बावजूद जवानी की निशानी थी। राधिका ने जल्दी से पल्लू ठीक किया और रसोई की ओर बढ़ी। “हाँ बाबूजी, अभी लाती हूँ,” उसने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक थकान थी।
बलदेव आँगन में कुर्सी पर बैठा था। उसने राधिका को रसोई से निकलते देखा। उसकी साड़ी उसकी कमर से चिपकी हुई थी, और चलते वक्त उसकी चाल में एक लचक थी जो बलदेव की नज़रों से बच न सकी। “कमाल की बहू मिली है,” उसने मन में सोचा, और एक गहरी साँस ली। सुनील की बीवी को वो हमेशा से पसंद करता था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसकी नज़रें बदल गई थीं। राधिका की उदासी, उसकी तन्हाई, और उसका खूबसूरत जिस्म – ये सब बलदेव के मन में एक अजीब सी हलचल पैदा कर रहे थे।
पहला आकर्षण
एक दिन दोपहर को राधिका नहाने के बाद बाल सुखा रही थी। उसकी गीली साड़ी उसके बदन से चिपक गई थी, और उसकी भरी हुई छाती ब्लाउज़ में साफ़ नज़र आ रही थी। बलदेव खेत से लौटा और उसे आँगन में देखा। उसकी नज़रें राधिका की गीली कमर पर टिक गईं, जहाँ पानी की बूँदें धीरे-धीरे नीचे सरक रही थीं। “राधिका, पानी गरम है क्या?” उसने बहाना बनाते हुए पूछा। राधिका ने घूमकर देखा, “हाँ बाबूजी, अभी गरम कर दूँ?” उसकी आवाज़ में मासूमियत थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और था।
बलदेव ने पास आकर कहा, “अरे, तू ऐसे गीली साड़ी में बाहर क्यों खड़ी है? बीमार पड़ जाएगी।” उसने अपना हाथ राधिका के कंधे पर रख दिया। उसका स्पर्श गर्म था, और राधिका के बदन में एक सिहरन दौड़ गई। “बाबूजी, बस अभी बदल लेती हूँ,” उसने कहा और जल्दी से कमरे में चली गई। लेकिन बलदेव की नज़रें उसके पीछे-पीछे गईं। उसकी चाल, उसकी कमर का उभार, सब कुछ उसे पागल कर रहा था।
रात का खेल
एक रात सुनील फिर से शहर गया था। घर में सिर्फ़ राधिका और बलदेव थे। बाहर तेज़ हवा चल रही थी, और बिजली चली गई। राधिका अपने कमरे में अकेली थी, जब उसे लगा कि कोई दरवाज़े पर खड़ा है। “कौन है?” उसने डरते हुए पूछा। “मैं हूँ, राधिका,” बलदेव की भारी आवाज़ आई। वो अंदर आया, उसके हाथ में एक लालटेन थी। “सोचा देख लूँ, तू डर तो नहीं रही,” उसने कहा और राधिका के पास चारपाई पर बैठ गया।
राधिका की साड़ी का पल्लू नीचे सरक गया था, और उसकी गोरी छाती पर लालटेन की रोशनी पड़ रही थी। बलदेव की नज़रें वहाँ टिक गईं। “बाबूजी, आप यहाँ क्यों?” राधिका ने पूछा, लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी। बलदेव ने धीरे से कहा, “राधिका, तू बहुत अकेली है। सुनील को तेरी कद्र नहीं। लेकिन मैं हूँ ना।” उसने अपना हाथ राधिका की जाँघ पर रख दिया। राधिका का दिल ज़ोर से धड़का। “बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं?” उसने कहा, लेकिन उसका जिस्म जवाब नहीं दे रहा था।
बलदेव ने और करीब आते हुए कहा, “राधिका, तेरे इस हुस्न को बेकार मत जाने दे। मैं तेरी हर तड़प मिटा दूँगा।” उसकी उंगलियाँ अब राधिका की साड़ी को ऊपर सरका रही थीं, और उसकी गोरी जाँघें नज़र आने लगीं। राधिका की साँसें तेज़ हो गईं। “हाय… बाबूजी, ये गलत है,” उसने फुसफुसाया, लेकिन उसकी आँखें बंद हो गईं। बलदेव का हाथ अब और ऊपर बढ़ा, और उसने राधिका को अपनी ओर खींच लिया। “गलत वो है जो तुझे तड़पाए, बहू,” उसने कहा और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।
राधिका के मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकली, “हम्म… बाबूजी।” उसका जिस्म गर्म हो रहा था, और वो खुद को रोक न सकी। बलदेव का जोश बढ़ता गया। उसने राधिका की साड़ी को और खींचा, और उसका गोरा बदन लालटेन की रोशनी में चमक उठा। “राधिका, तू कितनी खूबसूरत है,” उसने कहा और उसे अपनी बाहों में कस लिया। उस रात हवा की सनसनाहट और उनकी साँसों की आवाज़ एक-दूसरे में घुल गई।
सुबह की उलझन
अगली सुबह राधिका उठी। उसकी साड़ी बिखरी पड़ी थी, और उसका मन गिल्ट से भरा था। बलदेव बाहर आँगन में बैठा चाय पी रहा था, जैसे कुछ हुआ ही न हो। राधिका ने उससे नज़रें मिलाने की कोशिश की, लेकिन वो शरमा गई। “बाबूजी, रात को जो हुआ…” उसने शुरू किया, लेकिन बलदेव ने उसे बीच में रोक दिया। “राधिका, जो हुआ, वो हमारी तन्हाई का नतीजा था। लेकिन मैं तुझे कभी दुखी नहीं देख सकता,” उसने कहा।
राधिका चुप रही। उसका मन उलझा था – गलत और सही के बीच। लेकिन उसके जिस्म में जो आग बुझी थी, वो उसे फिर से महसूस करना चाहती थी। बलदेव की नज़रें अब हर वक्त उस पर रहती थीं, और राधिका भी धीरे-धीरे उसकी ओर खिंचती जा रही थी।
दिन बीतते गए, लेकिन उस रात की गर्मी राधिका के जिस्म और मन से नहीं गई। हर सुबह जब वो आँगन में झाड़ू लगाती, बलदेव की नज़रें उसकी कमर पर टिक जातीं। उसकी साड़ी का पल्लू हवा में हल्का-हल्का उड़ता, और उसकी गोरी त्वचा पर सूरज की किरणें पड़तीं। बलदेव चुपके से उसे देखता, और उसके मन में एक आग सुलगती। “ये बहू नहीं, कोई अप्सरा है,” वो सोचता और अपनी चाहत को दबाने की कोशिश करता। लेकिन राधिका भी अब पहले जैसी नहीं थी। उसकी शर्म धीरे-धीरे कम हो रही थी, और बलदेव की नज़रों का जवाब वो एक हल्की सी मुस्कान से देने लगी थी।
दोपहर की चिंगारी
एक दिन दोपहर को गाँव में सन्नाटा था। गर्मी की वजह से सब अपने घरों में थे। राधिका रसोई में खाना बना रही थी। उसकी साड़ी पसीने से भीग गई थी, और उसका ब्लाउज़ उसकी पीठ से चिपक गया था। बलदेव खेत से लौटा और सीधा रसोई में आया। “राधिका, पानी दे,” उसने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक भारीपन था। राधिका ने घूमकर देखा। बलदेव की कमीज़ पसीने से तर थी, और उसका मज़बूत बदन साफ़ नज़र आ रहा था। उसने लोटा भरकर पानी दिया, लेकिन जब बलदेव ने लोटा लिया, तो उसकी उंगलियाँ राधिका के हाथ से छू गईं।
दोनों एक पल के लिए रुक गए। राधिका की साँसें तेज़ हो गईं, और बलदेव की आँखों में वो आग फिर से सुलग उठी। “बाबूजी, आप… आप खेत से थक गए होंगे,” उसने नज़रें झुकाते हुए कहा। बलदेव ने लोटा नीचे रखा और एक कदम करीब आया। “थकान तो है, राधिका, लेकिन तेरे पास आकर सब भूल जाता हूँ,” उसने धीरे से कहा और अपना हाथ राधिका की कमर पर रख दिया। राधिका का बदन सिहर उठा। “हाय… बाबूजी, कोई देख लेगा,” उसने फुसफुसाया, लेकिन उसकी आवाज़ में डर कम और चाहत ज़्यादा थी।
बलदेव ने उसे अपनी ओर खींचा। “कोई नहीं देखेगा, बहू। ये घर हमारा है, और ये पल भी,” उसने कहा और राधिका की गर्दन पर अपनी गर्म साँसें छोड़ दीं। राधिका की आँखें बंद हो गईं। उसका जिस्म अब उसकी बात नहीं मान रहा था। बलदेव ने अपना हाथ उसकी साड़ी के ऊपर फेरा, और उसकी उंगलियाँ राधिका की जाँघों तक पहुँच गईं। “बाबूजी… हाय, ये क्या कर रहे हैं?” राधिका की आवाज़ में एक नशा था। बलदेव ने उसे रसोई की दीवार से सटा दिया और कहा, “तेरी तड़प मिटा रहा हूँ, राधिका। तू भी तो ये चाहती है।”
राधिका के मुँह से एक सिसकारी निकली, “हम्म… बाबूजी, और करो।” उसकी साड़ी अब नीचे सरक रही थी, और उसका गोरा बदन बलदेव के सामने नंगा हो रहा था। बलदेव का जोश बढ़ता गया। उसने राधिका को अपनी बाहों में उठाया और उसे पास के कमरे में ले गया। वहाँ चारपाई पर दोनों एक-दूसरे में खो गए। “राधिका, तेरा ये हुस्न मेरे लिए बना है,” बलदेव ने कहा, और उसकी साँसें राधिका के जिस्म पर आग की तरह फैल रही थीं। “हाँ बाबूजी, मुझे सब चाहिए,” राधिका ने जवाब दिया, और उसकी आवाज़ में एक जंगलीपन था।
सुनील की वापसी
कुछ दिन बाद सुनील घर लौटा। उसकी आँखों में शराब का सुरूर था, और वो आते ही राधिका पर चिल्लाया, “खाना तैयार है कि नहीं?” राधिका ने चुपचाप खाना परोसा, लेकिन उसकी नज़रें बलदेव पर थीं, जो बाहर आँगन में बैठा था। सुनील ने खाना खाया और सो गया। रात को जब वो खर्राटे ले रहा था, राधिका चुपके से बाहर निकली। बलदेव आँगन में चारपाई पर लेटा था। “बाबूजी, नींद नहीं आ रही,” उसने धीरे से कहा।
बलदेव ने उसे देखा। राधिका की साड़ी का पल्लू हल्का सा खुला था, और उसकी छाती की उभार लालटेन की रोशनी में चमक रही थी। “आ जा, बहू,” उसने कहा और अपनी बाहें खोल दीं। राधिका उसके पास लेट गई। बलद ev की उंगलियाँ उसके बालों में फिरने लगीं, और फिर धीरे-धीरे उसकी कमर पर आ गईं। “सुनील को पता चला तो क्या होगा?” राधिका ने पूछा। बलदेव ने हँसते हुए कहा, “उसे अपनी शराब से फुर्सत मिले, तब ना। तू मेरी है, राधिका।” उसने राधिका की साड़ी को ऊपर उठाया, और उसकी गोरी जाँघें फिर से नज़र आईं। “हाय… बाबूजी, आप मुझे पागल कर देंगे,” राधिका ने सिसकते हुए कहा।
उस रात आँगन में चाँदनी थी, और चारपाई पर बलदेव और राधिका की साँसें एक-दूसरे में घुल गईं। बलदेव का मज़बूत बदन राधिका की नाज़ुक जवानी से टकरा रहा था। “और करो, बाबूजी… हाँ, ऐसे ही,” राधिका की आवाज़ में एक मस्ती थी। बलदेव ने उसे कस कर पकड़ा, “तेरी हर ख्वाहिश पूरी करूँगा, बहू,” उसने वादा किया।
गाँव की अफवाहें
गाँव में धीरे-धीरे बातें शुरू हो गईं। पड़ोस की कमला ने एक दिन राधिका को आँगन में बलदेव के साथ हँसते देख लिया। “ये क्या चल रहा है?” उसने अपनी सहेलियों से कहा। बात गाँव की चौपाल तक पहुँची। सुनील को जब हवा लगी, वो गुस्से से आग-बबूला हो गया। एक शाम वो घर आया और राधिका पर हाथ उठाया। “कुतिया, तू मेरे बाप के साथ ये सब कर रही है?” उसने चिल्लाया।
राधिका ने पहली बार जवाब दिया, “हाँ, कर रही हूँ। क्योंकि तू मुझे कभी औरत समझा ही नहीं। बाबूजी ने मुझे वो प्यार दिया जो तू कभी नहीं दे सका।” सुनील ने बलदेव को गालियाँ दीं, लेकिन बलदेव शांत रहा। “सुनील, गलती तेरी है। तूने इसे तन्हा छोड़ दिया,” उसने कहा। गाँव वालों ने पंचायत बुलाई, लेकिन राधिका और बलदेव ने साफ़ कह दिया, “हम साथ रहेंगे।”
नया जीवन
आखिरकार सुनील ने गाँव छोड़ दिया। राधिका और बलदेव अब खुलकर साथ थे। गाँव में लोग उन्हें कोसते, लेकिन उनकी परवाह नहीं थी। हर रात बलदेव की बाहों में राधिका अपनी जवानी को जीती। “बाबूजी, आप मेरे सब कुछ हो,” वो कहती, और बलदेव उसे कस कर पकड़ता, “तू मेरी जान है, राधिका।” उनकी चाहत अब किसी से छुपी नहीं थी।
सुनील के गाँव छोड़ने के बाद घर में एक अजीब सा सुकून था। राधिका अब खुलकर बलदेव के साथ रहने लगी थी। गाँव वाले भले ही पीठ पीछे बातें करते, लेकिन राधिका को अब उनकी परवाह नहीं थी। उसकी जवानी, जो सालों से पति की बेरुखी में दबी थी, अब बलदेव की चाहत में खिल रही थी। हर सुबह वो साड़ी पहनते वक्त आईने में खुद को देखती, अपनी गोरी कमर पर हाथ फेरती, और सोचती, “ये हुस्न अब किसी का गुलाम नहीं।”
रात की मस्ती
एक रात चाँद पूरा था। हवा में हल्की ठंडक थी, और गाँव में सन्नाटा पसरा था। राधिका ने लाल रंग की पतली साड़ी पहनी थी, जो उसके जिस्म से चिपक रही थी। उसका ब्लाउज़ इतना टाइट था कि उसकी भरी हुई छाती बाहर उभर रही थी। वो जानबूझकर बलदेव के कमरे की ओर गई। बलदेव चारपाई पर लेटा था, उसकी कमीज़ के बटन खुले थे, और उसका चौड़ा सीना चाँदनी में चमक रहा था। “बाबूजी, नींद नहीं आ रही,” राधिका ने शरारती लहजे में कहा और उसके पास बैठ गई।
बलदेव ने उसे देखा। उसकी नज़रें राधिका की साड़ी से झाँकती कमर और उसकी गहरी नाभि पर टिक गईं। “राधिका, तू आज किसी परी से कम नहीं लग रही,” उसने कहा और अपना हाथ उसकी जाँघ पर रख दिया। राधिका की साँसें तेज़ हो गईं। उसने जानबूझकर अपना पल्लू थोड़ा और सरकने दिया, और उसकी गोरी छाती बलदेव के सामने नंगी हो गई। “बाबूजी, ये सब आपका है। जो चाहे कर लो,” उसने फुसफुसाते हुए कहा।
बलदेव का जिस्म गर्म हो उठा। उसने राधिका को अपनी ओर खींचा और उसे चारपाई पर लिटा दिया। “बहू, तू मुझे जला डालेगी,” उसने कहा और उसकी साड़ी को धीरे-धीरे ऊपर उठाया। राधिका की गोरी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। उसने अपना हाथ राधिका की कमर पर फेरा, फिर उसकी नाभि के पास रुक गया। “हाय… बाबूजी, और करो,” राधिका की आवाज़ में एक मादक सिसकारी थी। बलदेव ने अपना चेहरा उसकी गर्दन पर रखा और धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ा। उसकी गर्म साँसें राधिका की छाती पर पड़ रही थीं।
राधिका का बदन थरथरा रहा था। “हम्म… बाबूजी, मुझे पागल कर दो,” उसने कहा और अपनी बाहें बलदेव की पीठ पर लपेट दीं। बलदेव ने उसका ब्लाउज़ खोल दिया, और राधिका की नंगी छाती उसके सामने थी। “राधिका, तेरा ये हुस्न किसी खजाने से कम नहीं,” उसने कहा और उसे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया। उस रात चारपाई पर उनकी साँसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं। “और जोर से, बाबूजी… हाँ, ऐसे ही,” राधिका की आवाज़ में एक जंगली नशा था। बलदेव का मज़बूत बदन उसकी नाज़ुक जवानी को कुचल रहा था। “तेरी हर तड़प मिटा दूँगा, बहू,” उसने वादा किया, और दोनों चाँदनी में खो गए।
दिन का खेल
दिन में भी अब दोनों का आकर्षण छुप नहीं रहा था। एक दोपहर राधिका नहाने के बाद आँगन में बाल सुखा रही थी। उसकी गीली साड़ी उसके जिस्म से चिपक गई थी, और उसकी कमर का हर उभार साफ़ नज़र आ रहा था। बलदेव खेत से लौटा और उसे देखते ही रुक गया। “राधिका, तू ऐसे बाहर क्यों खड़ी है?” उसने बहाना बनाया, लेकिन उसकी आँखें कुछ और कह रही थीं। राधिका ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा, “बाबूजी, गर्मी लग रही थी। क्या करूँ?”
बलदेव ने पास आकर कहा, “गर्मी है तो उसे बुझा देता हूँ।” उसने राधिका का हाथ पकड़ा और उसे घर के पीछे गोदाम की ओर ले गया। वहाँ कोई नहीं आता था। बलदेव ने दरवाज़ा बंद किया और राधिका को दीवार से सटा दिया। “बाबूजी, यहाँ?” राधिका ने हँसते हुए पूछा। बलदेव ने उसकी साड़ी को ऊपर उठाया और उसकी जाँघों पर हाथ फेरा। “हाँ, यहाँ। तुझे हर जगह अपनी बना लूँगा,” उसने कहा और उसे कस कर चूम लिया।
राधिका की सिसकारियाँ गोदाम में गूँज रही थीं। “हाय… बाबूजी, आप कितने जालिम हो,” उसने कहा, और उसका जिस्म बलदेव की हर हरकत के साथ काँप रहा था। बलदेव ने उसकी साड़ी को पूरा खोल दिया, और राधिका का नंगा बदन धूप की हल्की किरणों में चमक रहा था। “तेरी ये जवानी मेरे लिए बनी है,” उसने कहा और उसे अपनी बाहों में उठा लिया। उस दोपहर गोदाम की गर्मी में दोनों की आग एक-दूसरे से टकराई। “और करो… हाँ, मुझे सब दे दो,” राधिका की आवाज़ में एक भूख थी। बलदेव ने उसे और कस लिया, “तेरे लिए जान भी दूँगा, राधिका।”
गाँव का तूफान
गाँव में अफवाहें अब चरम पर थीं। कमला ने एक दिन बलदेव और राधिका को गोदाम से निकलते देख लिया। उसने गाँव की औरतों को बता दिया, और बात पंचायत तक पहुँची। एक शाम गाँव के सरपंच ने बलदेव को बुलाया। “बलदेव, ये क्या कर रहा है? अपनी बहू के साथ ये हरकतें?” सरपंच ने गुस्से में पूछा। बलदेव ने साफ़ कहा, “राधिका मेरी है। सुनील ने उसे कभी नहीं अपनाया। मैंने उसे वो प्यार दिया जो उसका हक था।”
राधिका भी पंचायत में आई। उसने सबके सामने कहा, “हाँ, मैं बाबूजी के साथ हूँ। मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं। आप लोग मेरे पति को पूछो, जो मुझे सालों से तन्हा छोड़ गया।” गाँव वाले हैरान थे। कुछ ने उन्हें कोसा, कुछ ने चुपचाप सर हिला दिया। सरपंच ने कहा, “ये गाँव के रीति-रिवाज़ के खिलाफ है। तुम्हें गाँव छोड़ना होगा।”
नई शुरुआत
बलदेव और राधिका ने गाँव छोड़ने का फैसला किया। वो पास के शहर में एक छोटा सा मकान लेकर रहने लगे। वहाँ कोई उनकी कहानी नहीं जानता था। बलदेव ने खेती छोड़कर एक दुकान खोली, और राधिका उसके साथ काम में हाथ बँटाती। लेकिन उनकी असली दुनिया रात को शुरू होती थी। हर रात वो एक-दूसरे की बाहों में खो जाते।
एक रात राधिका ने काले रंग की नाइटी पहनी, जो उसके जिस्म से चिपक रही थी। वो बलदेव के पास गई और उसकी गोद में बैठ गई। “बाबूजी, अब तो मैं पूरी तरह आपकी हूँ,” उसने कहा और उसकी छाती पर हाथ फेरा। बलदेव ने उसे कस कर पकड़ा, “राधिका, तू मेरी जिंदगी है।” उसने उसकी नाइटी को ऊपर उठाया, और राधिका की गोरी जाँघें फिर से नज़र आईं। “हाय… बाबूजी, मुझे फिर से वो आग चाहिए,” राधिका ने फुसफुसाया। बलदेव ने उसे बिस्तर पर लिटाया और कहा, “तेरी हर ख्वाहिश पूरी करूँगा।”
उस रात उनकी साँसें फिर से एक-दूसरे में घुल गईं। राधिका की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “और जोर से… हाँ, बाबूजी, ऐसे ही।” बलदेव का जोश उसकी जवानी को कुचल रहा था। “तू मेरी रानी है, राधिका,” उसने कहा, और दोनों एक-दूसरे में डूब गए।
शहर में उनकी जिंदगी नई थी, लेकिन उनकी चाहत वही पुरानी थी। गाँव की यादें धीरे-धीरे मिट गईं, और वो अपनी दुनिया में मस्त थे। राधिका अब हर सुबह बलदेव की बाहों में उठती, और हर रात उसकी गोद में सोती। “बाबूजी, आपने मुझे जिंदगी दी,” वो कहती। बलदेव उसे चूमता और कहता, “तू मेरी जिंदगी है, बहू।” उनकी कहानी गाँव के लिए एक सबक थी, लेकिन उनके लिए एक नया प्यार, एक नई आग, और एक अनंत चाहत।
ससुर की चाहत (और हॉट हिस्सा)
शहर का छोटा सा मकान बलदेव और राधिका का नया ठिकाना था। दिन में वो दुकान चलाते, लेकिन रात होते ही उनका असली खेल शुरू होता। राधिका अब पहले से भी ज़्यादा बिंदास हो गई थी। उसकी जवानी अपने चरम पर थी, और बलदेव का मर्दाना जोश उसकी हर तड़प को शांत करने के लिए तैयार था। गाँव की बंदिशें पीछे छूट गई थीं, और अब वो दोनों अपनी हवस को खुलकर जी रहे थे।
रात का जलवा
एक रात बारिश हो रही थी। खिड़की से ठंडी हवा कमरे में आ रही थी। राधिका ने टाइट सिल्क की लाल नाइटी पहनी थी, जो उसके जिस्म के हर कर्व को उभार रही थी। उसकी भरी हुई चूचियाँ नाइटी से बाहर झाँक रही थीं, और उसकी गोरी जाँघें नीचे से नंगी चमक रही थीं। वो बिस्तर पर लेटी थी, अपने बालों को उंगलियों से सहला रही थी। बलदेव अंदर आया, उसकी कमीज़ गीली थी, और उसका मज़बूत सीना साफ़ नज़र आ रहा था। “राधिका, तू आज किसी आग का गोला लग रही है,” उसने भारी आवाज़ में कहा और बिस्तर के पास आ गया।
राधिका ने शरारती अंदाज़ में अपनी टाँगें फैलाईं और कहा, “बाबूजी, ये आग आपके लिए ही सुलग रही है। आओ ना, इसे बुझा दो।” बलदेव की आँखें लाल हो गईं। वो राधिका के ऊपर झुक गया और उसकी नाइटी को ऊपर खींच दिया। उसकी गोरी चिकनी जाँघें पूरी नंगी हो गईं, और उसकी गर्म चूत की महक बलदेव को पागल कर रही थी। “बहू, तेरा ये माल मेरे लिए जन्नत है,” उसने कहा और अपना मोटा हाथ उसकी चूचियों पर रख दिया।
राधिका की सिसकारी निकल पड़ी, “हाय… बाबूजी, दबाओ ना, जोर से।” बलदेव ने उसकी नाइटी को फाड़ते हुए खींच दिया, और उसकी भारी चूचियाँ उसके सामने उछल पड़ीं। “क्या मस्त माल है तू, राधिका,” उसने कहा और उसकी चूचियों को मसलना शुरू कर दिया। राधिका का जिस्म तड़प रहा था। “हम्म… बाबूजी, चूसो इन्हें, मेरी जान निकल रही है,” उसने सिसकते हुए कहा। बलदेव ने अपना मुँह उसकी चूचियों पर रखा और उन्हें चूसना शुरू कर दिया, जैसे कोई भूखा शेर अपने शिकार पर टूट पड़ा हो।
राधिका की चूत गीली हो रही थी। “हाय… बाबूजी, नीचे भी तो देखो, वो तरस रही है,” उसने नशे में कहा। बलदेव ने अपना हाथ नीचे सरकाया और उसकी चूत पर रख दिया। वो गर्म और गीली थी। “राधिका, तेरी ये चूत मेरे लंड के लिए रो रही है,” उसने कहा और अपनी उंगलियाँ अंदर डाल दीं। राधिका की चीख निकल पड़ी, “आह्ह… बाबूजी, और अंदर, फाड़ दो इसे!” उसका जिस्म काँप रहा था, और वो बलदेव के सीने से चिपक गई।
बलदेव ने अपनी पैंट उतारी। उसका मोटा लंड बाहर आया, जो राधिका को देखकर और सख्त हो गया। “देख, बहू, ये तेरे लिए तैयार है,” उसने कहा और उसे बिस्तर पर पटक दिया। राधिका की टाँगें फैल गईं। “हाय… बाबूजी, डाल दो ना, अब बर्दाश्त नहीं होता,” उसने चिल्लाया। बलदेव ने अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ा और फिर एक झटके में अंदर डाल दिया। “आह्ह्ह… बाबूजी, कितना मोटा है,” राधिका की सिसकारी कमरे में गूँज गई।
बलदेव ने उसे जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिया। “ले, राधिका, तेरी चूत की आग बुझा दूँगा,” उसने कहा। बिस्तर हिल रहा था, और राधिका की चीखें बारिश की आवाज़ को दबा रही थीं। “हाँ… बाबूजी, और जोर से, फाड़ दो मुझे,” वो चिल्ला रही थी। बलदेव का लंड उसकी चूत को चीर रहा था, और उसकी चूचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं। “तेरी चूत कितनी टाइट है, बहू,” बलदेव ने कहा और उसे और कस कर पकड़ लिया। उस रात दोनों की हवस एक-दूसरे में घुल गई, और बारिश की बूँदें उनके जिस्म की आग को ठंडा न कर सकीं।
दिन का नंगा नाच
अगले दिन सुबह राधिका नहाने गई। वो बाथरूम से निकली, तो सिर्फ़ एक तौलिया लपेटे हुए थी। उसकी गीली चूचियाँ तौलिये से बाहर झाँक रही थीं, और उसकी जाँघें नंगी चमक रही थीं। बलदेव उसे देखकर पागल हो गया। “राधिका, तू सुबह-सुबह भी मुझे गरम कर देगी,” उसने कहा और उसे कमरे में खींच लिया। “बाबूजी, अभी तो रात को…” राधिका ने हँसते हुए कहा, लेकिन बलदेव ने उसका तौलिया खींच दिया।
राधिका का नंगा जिस्म उसके सामने था। “क्या मस्त माल है तू,” बलदेव ने कहा और उसे दीवार से सटा दिया। उसने अपना लंड बाहर निकाला और राधिका की चूत पर रगड़ा। “हाय… बाबूजी, आप तो सुबह भी चोदना चाहते हो,” राधिका ने सिसकते हुए कहा। बलदेव ने उसे उठाया और उसकी टाँगें अपने कंधों पर रख दीं। “हाँ, बहू, दिन-रात तुझे चोदूँगा,” उसने कहा और अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया।
राधिका की चीख निकल पड़ी, “आह्ह… बाबूजी, फाड़ डालो, और जोर से!” बलदेव ने उसे दीवार के सहारे चोदना शुरू कर दिया। उसकी चूचियाँ हवा में उछल रही थीं, और उसकी चूत से रस टपक रहा था। “तेरी चूत मेरे लंड की दीवानी है,” बलदेव ने कहा और उसे और तेज़ चोदा। “हाँ… बाबूजी, चोदते रहो, मुझे जन्नत दिखाओ,” राधिका चिल्ला रही थी। उस सुबह कमरे में उनका नंगा नाच चलता रहा, और सूरज की किरणें उनके जिस्म पर पड़ रही थीं।
शहर का नया रंग
शहर में उनकी जिंदगी अब हवस और प्यार का मिश्रण थी। राधिका ने एक दिन टाइट जींस और टॉप पहना। उसकी चूचियाँ टॉप से बाहर आने को बेताब थीं, और उसकी गांड जींस में कसी हुई थी। बलदेव उसे देखकर बोला, “राधिका, तू अब शहर की रंडी लग रही है।” राधिका हँसी, “बाबूजी, आपकी रंडी हूँ ना।” उसने बलदेव का लंड पैंट के ऊपर से सहलाया और कहा, “चलो, आज बाहर चलकर मज़े करते हैं।”
दोनों एक सुनसान पार्क में गए। वहाँ झाड़ियों के पीछे बलदेव ने राधिका को पकड़ा और उसकी जींस नीचे खींच दी। “बाबूजी, यहाँ कोई देख लेगा,” राधिका ने कहा, लेकिन उसकी चूत पहले से गीली थी। बलदेव ने उसे झुकाया और उसकी गांड पर हाथ फेरा। “कोई नहीं देखेगा, ले मेरे लंड का मज़ा,” उसने कहा और पीछे से अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। “आह्ह… बाबूजी, कितना मोटा है, चोदो मुझे,” राधिका चिल्लाई। बलदेव ने उसे पेड़ के सहारे चोदा, और उसकी चूचियाँ टॉप से बाहर निकल आईं। “तेरी चूत को हर जगह चोदूँगा,” बलदेव ने कहा, और उस दिन पार्क में उनकी हवस की आग जंगल की तरह फैल गई।
अंतिम चरम
एक रात बलदेव और राधिका ने शराब पी। दोनों नशे में थे। राधिका नंगी होकर बिस्तर पर लेट गई। “बाबूजी, आज मुझे पूरा निचोड़ दो,” उसने कहा और अपनी टाँगें फैला दीं। बलदेव ने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी चूत पर रगड़ा। “राधिका, तू मेरी जान है, ले मेरा पूरा लंड,” उसने कहा और उसे चोदना शुरू कर दिया। “आह्ह… बाबूजी, फाड़ डालो, और जोर से,” राधिका चीख रही थी। बलदेव ने उसकी चूचियाँ मसलीं, उसकी चूत चोदी, और उसकी गांड पर थप्पड़ मारे। “तेरा जिस्म मेरा गुलाम है,” उसने कहा।
उस रात उनकी चुदाई घंटों चली। राधिका की सिसकारियाँ, “हाँ… चोदो, बाबूजी, मुझे जन्नत दो,” और बलदेव की भारी साँसें कमरे में गूँज रही थीं। आखिरकार दोनों थक कर एक-दूसरे की बाहों में गिर गए। “बाबूजी, आप मेरे सब कुछ हो,” राधिका ने कहा। बलदेव ने उसे चूमा, “तू मेरी हवस और मेरी ज़िंदगी है।”