उस समय मैं एक कॉलेज में लैब असिस्टेंस था, ये बात करीब ३ साल पुरानी है, मेरी साथ एक मैडम थी वो भी लैब असिस्टेंस थी, हम दोनों का काम होता था स्टूडेंट को हेल्प करना, मेरी हमेशा मज़ाक करने की आदत थी, इसवजह से मैं हमेशा कह देता था मैडम क्या डेट पे चलोगी? वो मुस्करा देती थी, मेरे मन में कुछ गलत नहीं था बस इतना कहने का मन करता था, और मैं हमेशा ये कहके उनको छेड़ देता था, मैडम का नाम था संध्या, जब स्टूडेंट की और टीचर की छुटियाँ भी हो जाती थी तब भी हम दोनों की ड्यूटी होती थी, क्यों की हम दोनों टीचिंग स्टाफ में नही होते थे,
गर्मी की छुट्टी में हम दोनों डेली कॉलेज जाते थे और लैब में ही होते थे, टाइम निकालना मुस्किल होता था क्यों की कोई काम नहीं होता था, बस यु ही बैठ के समय गुजार देते थे, एक दिन संध्या मैडम ने कहा सर आप रोज मुझे कहते हो डेट पे चलो डेट पे चलो, बोलो कहा चलना है, मैं स्तब्ध रह गया, वो बोली ये बात किसी से नहीं कहना मैं आपके साथ चलूगी, और पास आकर बैठ गयी, वो मेरे काफी करीब बैठी थी, मैंने आँख में आँख डालकर देखा और पूछा सच में चलना है वो बोली हां, मैंने अपना हाथ उसके जांघ पे रखा तो वो भी मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दी. मुझे समझ आ गया, की आज कुछ ये चाह रही है मेरे से फिर वो उठकर गेट के पास गयी और इधर उधर गयी और वो मेरे गोद में करीब तीन सेकंड के लिए बैठी फिर उठ गयी फिर वो दरवाजे के पास चली गयी, फिर वो इधर उधर झांक के देखि और पास आकर बैठ गयी.
मैंने उसके गाल पे ऊँगली फिराई वो शांत रही, मैंने उंगली ऊपर से निचे उसके ३४ साइज के बूब पे रखा तब भी वो चुप रही मैंने उसके बूब के कस के पकड़ लिया वो एक गहरी सांस ली और हवस भरी निगाहो से मुझे देखी, मेरे भी तन बदन में आग लग चुका था लंड मेरा फनफना रहा था, साँसे मेरी भी तेज हो चुकी थी, बार बार लंड पे हाथ रख रहा था फिर मैंने उसका हाथ पकड़ पे अपने लंड पे ले गया, वो जैसे ही पेंट के ऊपर से ही मेरे लंड पे हाथ राखी वो ऊपर से निचे तक सिहर गयी, और होठ का एक कोना दांत से काटने के लिए स्टार्ट की और होठ के दूसरे छोर तक काटते हुए गयी.
मैं झट से उठ के फिर दरबाजे पे आये और देखा की कोई है तो नहीं, कोई नहीं था, मैंने वापस आया वो कड़ी थी मैंने पीछे से पकड़ा दोनों चूचियों को और कस कस के दबाने लगा उसका हाथ मेरे हाथ के ऊपर था, वो इस्स्स इस्स्स इस्स्स की आवाज़ निकाल रही थी जब जब मैं उसकी मस्त चूचियों को दबा रहा था, फिर वो झटक के मेरे तरफ घूम गयी और मुझे पकड़ ली और मेरे होठ के अपना होठ ले गयी और किश करने लगी, वो वाइल्ड किश था, कभी जीभ मेरे मुह में घुसा रही थी कभी हल्का हल्का दाँतो से काट रही थी, दोनों हाथ मेरे गाल पे आ गए और किश का एन्जॉय कर रही थी मैंने भी फिर से हाथ उसके पीछे किये और दोनों उभरे हुए चूतड़ को पकड़ा और दबाया ताकि उसका छूट मेरे लैंड के करीब आ जाए, और मैंने जोर जोर से धक्का लगाने लगा, पर बैचेनी बढ़ रही थी क्यों की अभी तक जिस्म से जिस्म मिले नहीं थे बस कपडे के ऊपर से ही ये सब हो रहा था, तभी कोई कॉरिडोर में दिखाई दिया और हम दोनों फिर अलग अलग बैठ गए और किताब पढ़ने लगे, और थोड़े देर में ही छुट्टी हो गयी थी उस दिन कुछ भी नहीं हो पाया था,
शाम को करीब ७ बजे फ़ोन आया संध्या का बोली सर क्या कल आप छुट्टी कर सकते हो, मैं भी कल नहीं जाऊँगी ऑफिस, दोनों मिलकर कही चलते है, मैंने कहा ठीक है मैं ऑफिस के लिए ही निकलूंगा पर ऑफिस नहीं आऊंगा. संध्या बोली ठीक है मैं भी वही करुँगी, हम दोनों ने प्लान बनाया और एक जगह पे मिलने को फिक्स किया, मैं उसी जगह पे अपने कार से पहुंच गया वो वही पे दुपट्टा से चेहरा ढके खड़ी थी, फिर हम दोनों एनसीआर में एक होटल में गए, करीब ११ बजे पहुंच गए थे, कमरे बुक किये.
हम दोनों जैसे ही रूम के अंदर पहुचे पागलो की तरह एक दूसरे को चाटने लगे, और एक एक कर के सारे कपडे उतार दिया वो सिर्फ पेंटी में थी और बीएड पे लेटी नशीली आँखों से निहार रही थी, क्या खूब लग रही थी, फिर मैंने उसके ऊपर चढ़ के बूब को प्रेस करने लगा और होठ को अपने होठ में लेके चूसने लगा, होठ और गाल उसके लाल हो गए थे, मैंने उसके होठ से जीभ फिराना शुरू किया और बूब से होते हुए नाभि फिर पेंटी के पास पहुंचे और एक गहरी सांस लेके पेंटी को सुंघा मदहोश कर देने बाली खुसबू थी मेरा तो लंड खड़ा हो गया था ऊपर से थड़ा थोड़ा लसलसा से निकलने भी लगा मैंने पेंटी खोली तो देखा उसका चूत पानी पानी हो चुका था, मैंने थोड़ा चिर के देखा टाइट चूत था अंदर का कलर गुलाबी था, मैंने जीभ लगाया वो सिहर गयी, और अपनी जीभ फिर फिराने लगा, वो अपना हाथ ऊपर कर के तकिये पे कस के अपनी मुठी में पकड़ने की कोशिश कर रही था और फिर वो अपने चूत को उछलने लगी, मैंने एक ऊँगली दाल के अंदर बाहर करने लगा, वो काफी ज्यादा कामुक हो चुकी थी माथे पे पसीना निकलने लगा था.
वो कहने लगी अब बर्दास्त के बाहर है मुझे चोद दो, मेरी वासना को पूर्ति कर दो, मेरा मन भर दो, चोद दो मुझे, आज मैं सिर्फ तुम्हारी हु, और मेरा लंड अपने मुह में लेके चूसने लगी ऐसे कर रही थी की कितनी प्यासी हो, मेरा भी तन बदन में आग लग चुका था मैं उसकी ज्वाला को शांत करने के लिए तैयार था जैसे वो मेरा लंड अपने मुह से निकाली मैंने दोनों टांगो को फैला कर उसके चूत पे लंड का सुपाड़ा रखा और एक ही झटके में अंदर घुसा दिया, वो आआआआआआआअह्ह्ह आआआआआआआआअह्ह्ह आआआआआआआआह्ह्ह की आवाज़ निकालने लगी, मैंने झटके पे झटके दे रहा था, और वो भी कभी अपने बूब के मसलती कभी मेरे बाल में ऊँगली फिराती इसतरह से करीब १ घंटे तक चोदा और दोनों निढाल होक सो गए, करीब १ घंटे बाद उठे. फिर निचे जाके दोनों खाना खाए और फिर मैंने वही मार्किट से सेक्स पील ली और अब तो और भी वाइल्ड हार्डकोर हो गया सेक्स, करीब २ घंटे तक चोदा उसके चूत का सत्यानाश कर दिया, फिर ऑफिस के टाइम में ही निकल गए अपने अपने घरो को.
अब तो जब भी मन होता है दोनों प्लान बना लेते है, और सुरु हो जाता है वासना का खेल.
Comments are closed.