आयुर्वेद के अनुसार धातु शक्ति है, शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही तरुणाई या जवानी है। शक्ति की कमी बुढ़ापा है और शक्ति का नाश मृत्यु है। बहु मैथुन से धातु का नाश होता है, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। हम यहां किसी वैचारिक विवाद में न पड़ते हुए सिर्फ इतना बताना चाहते हैं कि यह क्रिया सदा स्त्री-पुरुष के बीच एक सीमा में होनी चाहिए। बहु मैथुन (प्रतिदिन एक से अधिक बार मैथुन करना) से अनेक शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जो इस प्रकार हैं-
**हानियाँ :-
* प्रमेह (मूत्र संबंधी) रोगों का उत्पन्न होना,
स्वप्नदोष, शीघ्रपतन आदि समस्याओ का शिकार होना।
* पुठ्ठों का कमजोर होना तथा पीठ में दर्द होना,
मस्तिष्क में कमजोरी आना तथा स्मृति भ्रंश (याददाश्त
में कमी) का शिकार होना।
* चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, नजर
कमजोर होना, सिर में दर्द होना, भूख की कमी होना,
पाचन बिगड़ना, लीवर कमजोर होना।
* चेहरा मुरझा जाना, आंखों का अंदर धंस जाना, चेहरे
की हड्डियां निकल आना, आंखों की चमक कम होना,
उदासी, प्रत्येक कार्य करने से जी उकताना।
* अमाशय एवं गुर्दों का कमजोर होना, हृदय-
पेशियों का कमजोर पड़ना, नजला, जुकाम, मूत्राशय
की कमजोरी इत्यादि।
***रति क्रिया के नियम***
* दिन के समय कभी भी सहवास न करें, सहवास (मैथुन)
हमेशा रात में ही करना चाहिए वह भी सिर्फ एक बार।
हो सके तो इसमें भी ‘गैप’ दें।
* सूर्योदय के कुछ समय पूर्व से लेकर सूर्योदय के बाद यानी ब्रह्य मुहूर्त में किया गया सहवास स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है।
* जो लोग शाम सात बजे तक भोजन कर लेते हैं,
उनको छोड़कर शेष लोगों को जो कि भोजन
रात्रि 10-11 बजे तक करते हैं, सहवास आधी रात के
बाद करना हितकारी है।
* शयन के ठीक पहले दूध न पिएं, यदि दूध लेना ही है
तो सोने के एक घण्टा पूर्व लें।
* स्त्री का जिस समय मासिक धर्म चला रहा हो, तब
उसके साथ सहवास न करें। इन चार दिनों में कंडोम वगैरह
लगाकर भी नहीं। ऐसा करना कई तरह के रोगों को दावत
देना है। अप्राकृतिक मैथुन किसी भी सूरत में उचित नहीं,
इससे दूर ही रहें।
* कई व्यक्ति सहवास को महज एक औपचारिकता के
तौर पर लेते हैं और इस कार्य को केवल वीर्य स्खलन
मानते हुए जल्द खत्म कर देते हैं। दरअसल सहवास में
जल्दबाजी न तो पुरुष को ही आनंद देने वाली होती है
और न ही स्त्री की संतुष्टि। लिहाजा सहवास के पूर्व
विभिन्न क्रिया-कलाप एवं श्रृंगार रसपूर्ण बातों से
स्त्री के ‘काम’ या सेक्स को पूर्ण जागृत करें,
तभी सहवास का सच्चा आनंद आप पा सकते हैं और
सहयोगी को पूर्ण संतुष्टि भी दे सकते हैं।
* कई व्यक्ति सहवास को इस हद तक जरूरी मानते हैं
कि भले ही उनका सहयोगी ठंडा पड़ा हो या वह अन्य
किसी कठिन परिस्थिति से गुजर रहा हो, वे सहवास करते
ही हैं। यदि पति-पत्नी में से कोई भी क्रोध, चिंता, दुःख,
अविश्वास आदि किसी भी मानसिक समस्या से गुजर
रहा हो, तो सहवास करना उचित नहीं है। यानी सहवास
उसी समय परम आनंददायक होता है, जब पति-
पत्नी दोनों पूर्ण प्रसन्न चित्त हों।
* सहवास के समय ‘आसनों’ का प्रयोग करना यकीनन
आनंदवर्धक होता है पर योग्य जानकारी के बगैर कठिन
आसनों को सम्पन्न करना बिल्कुल सुरक्षित
नहीं कहा जा सकता।
* सहवास के तुरंत बाद पानी पीना उचित नहीं है। हां,
सहवास की समाप्ति पर मिठाई या मिश्री, गुड़
आदि खाना चाहिए और कुछ रुककर जल का सेवन
करना परम लाभदायक है।
* कुछ लोग सहवास समाप्ति पर लिंग को ठंडे पानी से
धोने में विश्वास रखते हैं, यह ठीक नहीं है। लिंग को कपड़े
से अच्छी तरह पोंछना ही ठीक है।
* सहवास के तुरंत बाद हवा में निकलना हानिकारक है।
* अपनी उम्र से ज्यादा और उम्र से कम स्त्री से
सहवास न करना ही उत्तम है। इसी प्रकार एक से
ज्यादा स्त्रियों से सहवास करने की आज्ञा भी शास्त्र
हमें नहीं देते।
* हवास में कई लोग भ्रमवश अपने आपको कमजोर मानते
हैं और इसलिए तरह-तरह की ऊटपटांग
इश्तिहारी औषधियों का सेवन करने लगते हैं। ऐसा करके
अपनी प्राकृतिक क्षमता को न खोएं। जब
आपको विश्वास हो जाए कि वाकई आप में कोई
कमजोरी है तो पहले किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें
और फिर उसके अनुसार ही इलाज करें।
* कई लोग लिंग पर ऊटपटांग तेल आदि का प्रयोग करते हैं, बगैर पूर्ण जानकारी के ऐसा करना ठीक नहीं। लिंग पर इत्र का लेप करना भी हानिकारक है।
Comments are closed.